यूँ तो आकाशवाणी के रीजनल प्रसारण केंद्रों से सिवा समाचार के कुछ और अच्छे की उम्मीद करना बेमानी ही होता है लेकिन कभी कभी कोई ऐसी चीज़ यहाँ मिल जाती है कि फ़िर रेडियो के नज़दीक बने रहने को जी करने लगता है. अनायास आकाशवाणी भोपाल से प्रसारित होने वाली उर्दू मैगज़ीन में ये ग़ज़ल सुनने को मिली.
एकदम नया नाम लेकिन लाजवाब कलाम और सुरीली तरन्नुम. शायर का नाम था जनाब मसूद रज़ा भोपाली.नोट कर ली थी सो आप भी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ;
पहले दामन यहाँ रफू कीजै
फिर बहारों की जुस्तजू कीजै
यही ऐलान कू ब कू कीजै
शीशा पत्थर के रूबरू कीजै
कभी हमको दीजै इज़्में-सुकूँ
कभी हमसे भी गुफ़्तगू कीजै
रोकिये अपनी मुस्कुराहट को
मेरा चाके जिगर रफू कीजै
कौन है अपने अब तसव्वुर में
आईना किसके रूबरू कीजै
हम सितम को सितम नहीं कहते
आप तौहीने आरज़ू कीजै.
Thursday, October 9, 2008
Wednesday, September 10, 2008
पहले दामन यहाँ रफू कीजै; फिर बहारों की जुस्तजू कीजै
यूँ तो आकाशवाणी के रीजनल प्रसारण केंद्रों से सिवा समाचार के कुछ और अच्छे की उम्मीद करना बेमानी ही होता है लेकिन कभी कभी कोई ऐसी चीज़ यहाँ मिल जाती है कि फ़िर रेडियो के नज़दीक बने रहने को जी करने लगता है. अनायास आकाशवाणी भोपाल से प्रसारित होने वाली उर्दू मैगज़ीन में ये ग़ज़ल सुनने को मिली.
एकदम नया नाम लेकिन लाजवाब कलाम और सुरीली तरन्नुम. शायर का नाम था जनाब मसूद रज़ा भोपाली.नोट कर ली थी सो आप भी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ;
पहले दामन यहाँ रफू कीजै
फिर बहारों की जुस्तजू कीजै
यही ऐलान कू ब कू कीजै
शीशा पत्थर के रूबरू कीजै
कभी हमको दीजै इज़्में-सुकूँ
कभी हमसे भी गुफ़्तगू कीजै
रोकिये अपनी मुस्कुराहट को
मेरा चाके जिगर रफू कीजै
कौन है अपने अब तसव्वुर में
आईना किसके रूबरू कीजै
हम सितम को सितम नहीं कहते
आप तौहीने आरज़ू कीजै.
एकदम नया नाम लेकिन लाजवाब कलाम और सुरीली तरन्नुम. शायर का नाम था जनाब मसूद रज़ा भोपाली.नोट कर ली थी सो आप भी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ;
पहले दामन यहाँ रफू कीजै
फिर बहारों की जुस्तजू कीजै
यही ऐलान कू ब कू कीजै
शीशा पत्थर के रूबरू कीजै
कभी हमको दीजै इज़्में-सुकूँ
कभी हमसे भी गुफ़्तगू कीजै
रोकिये अपनी मुस्कुराहट को
मेरा चाके जिगर रफू कीजै
कौन है अपने अब तसव्वुर में
आईना किसके रूबरू कीजै
हम सितम को सितम नहीं कहते
आप तौहीने आरज़ू कीजै.
Tuesday, July 29, 2008
किसी की याद में दुनिया को हैं भुलाए हुए
रफ़ी के बारे में अल्फ़ाज़ पीछे छूट जाते हैं.
अपने गाने में वे एक ऐसी तस्वीर बना देते हैं
कि लगता गायकी रफ़ी से शुरू होती है और उन्हीं
के साथ ख़त्म हो जाती है.
उनकी २८ वीं बरसी पर संगीतप्रेमियों की
भावपूर्ण श्रध्दांजली.वे ३१ जुलाई १९८० को
इस दुनिया ए फ़ानी से कूच कर गए थे.
अपने गाने में वे एक ऐसी तस्वीर बना देते हैं
कि लगता गायकी रफ़ी से शुरू होती है और उन्हीं
के साथ ख़त्म हो जाती है.
उनकी २८ वीं बरसी पर संगीतप्रेमियों की
भावपूर्ण श्रध्दांजली.वे ३१ जुलाई १९८० को
इस दुनिया ए फ़ानी से कूच कर गए थे.
Wednesday, July 9, 2008
देवकीनंदन पाण्डे के नाम से स्थापित होना चाहिये एक राष्ट्रीय सम्मान.
आज रेडियोनामा ने देश की एक ऐसी आवाज़ का ज़िक्र छेड़ किया जो
पूरे देश को अपने जादू से जाने-अनजाने कितने ही घटनाक्रम से की
वाहक रही. देवकीनंदन पाण्डेय की आवाज़ एक अंचल के सुख-दु:ख
को दूसरे अंचल तक पहुँचाने का काम करती रही. जिस समर्पण से
पाण्डेजी अपना काम करते रहे अत: उनके नाम को अक्षुण्ण बनाए
रखने के लिये प्रसार भारती को आकाशवाणी और दूरदर्शन के सैकड़ों
समाचार वाचकों में से किसी एक को प्रतिवर्ष देवकीनंदन पाण्डेय
सम्मान से नवाज़ा जाना चाहिये. इस शुरूआत से पाण्डेयजी जैसा
आदरणीय नाम करोड़ों भारतीयों के दिलोदिमाग़ में अविस्मरणीय तो
बना रहेगा ही साथ ही नई पीढ़ी भी इस स्वर-पितामह के हुनर की
स्मृति अपने मानस में बनाए रखेगी.पाण्डेजी की आवाज़ इरफ़ान
भाई ने यहाँ सहेज रखी है . आशा है आप सभी का समर्थन इस
विचार को मिलेगा.
पूरे देश को अपने जादू से जाने-अनजाने कितने ही घटनाक्रम से की
वाहक रही. देवकीनंदन पाण्डेय की आवाज़ एक अंचल के सुख-दु:ख
को दूसरे अंचल तक पहुँचाने का काम करती रही. जिस समर्पण से
पाण्डेजी अपना काम करते रहे अत: उनके नाम को अक्षुण्ण बनाए
रखने के लिये प्रसार भारती को आकाशवाणी और दूरदर्शन के सैकड़ों
समाचार वाचकों में से किसी एक को प्रतिवर्ष देवकीनंदन पाण्डेय
सम्मान से नवाज़ा जाना चाहिये. इस शुरूआत से पाण्डेयजी जैसा
आदरणीय नाम करोड़ों भारतीयों के दिलोदिमाग़ में अविस्मरणीय तो
बना रहेगा ही साथ ही नई पीढ़ी भी इस स्वर-पितामह के हुनर की
स्मृति अपने मानस में बनाए रखेगी.पाण्डेजी की आवाज़ इरफ़ान
भाई ने यहाँ सहेज रखी है . आशा है आप सभी का समर्थन इस
विचार को मिलेगा.
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Tuesday, June 24, 2008
क्या आपके शहर में घुमड़ रहे हैं बादल ? तो सुनिये ये कालजयी रचना.
फ़िल्म दो आँखें बारा हाथ।मन्ना डे और लता मंगेशकर की गायकी का लाजवाब अंदाज़.ये गीत तब भी सुनिये जब आपके शहर में बादल आपको तरसारहे हों और बरस नहीं रहे हों....हो सकता है कि इस गीत के बजने के बाद बरस जाएँ....
Tuesday, June 10, 2008
हुज़ूर ! अशआर कहिये न....शेरों नहीं
ब्लॉग्स पर शेर’ ओ’शायरी हमेशा शबाब पर रहती है.सदाबहार आयटम.
कई ब्लॉगर भाई/बहन अपनी डायरियों में लिखे गए विभिन्न शायरों
की शायरी ब्लॉग पर जारी करते हैं ।अच्छा है , शायरी संक्रामक हो रही है.
गुज़ारिश इतनी भर है कि किसी शायर के एक से अधिक शे’र हों तो
उसे अशआर कहते है यानी शे’र का बहुवचन. कुछ लोग अशआर को
एकवचन समझते हैं तो अधिक शे’र देख कर अशआरों भी लिख देते हैं.
भगवान के लिये ऐसा मत कीजिये ..किसी ज़ुबान से मुहब्बत कीजिये
तो , पूरी वरना किसने कहा है ऐसा करने को. यदि किसी ने लिख दिया है
कि उनके शेरों से आनंद आ गया तो यहाँ वही शेर होंगे जो गिर या
कान्हा किसली के जंगल में पाए जाते हैं ...यानी सिंह.
उर्दू ऐसी एकमात्र समृध्द भाषा है जिसके पास बहुवचन के लिये
जुदा शब्द हैं.जैसे एक आसमान की बात हो तो हिन्दी में आसमान
और ज़्यादा तो आसमानों कर देने से काम चल जाएगा लेकिन उर्दू में
एक आसमान यानी फ़लक़ और सातों आसमान कहना हो तब सातों अफ़लाक़.
तो अब जब भी एक से अधिक शे’र जारी करें या लिखें तो
अशआर लिखें ...शेरों न लिखें.
उर्दू एक बड़ी संजीदा ज़ुबान है और इसकी पूरी ख़ूबसूरती
उच्चारणों पर आधारित है. उर्दू लिपि जानने वाले तो
इस बात का पूरा एहतियात रखते हैं कि वह शुध्द लिखी जाए
लेकिन देवनागिरी में आते ही मामला गड़बड़ हो जाता है.बिला शक
उर्दू में ऐसा आकर्षण है वह हर आम-औ-ख़ास को अपने क़रीब लाती है.
लेकिन ये ज़रूरी है कि हिंदी में लिखते / बोलते वक़्त हम ज़ुबान (उच्चारण)
की सफ़ाई का ख़ास ख़याल रखें.हिन्दी का मज़ा ये है कि वह जैसे लिखी जाती
है वैसे ही बोली जाती है.जहाँ ज बोलना या लिखना है वहाँ ज ही बोलिये;
जहाँ ज़ है (यानी ज के नीचे बिंदु लगी है जिसे नुक़्ता कहते है) वहाँ ज़ ही रखिये.
अपनी ओर से इसमें कुछ भी रद्दोबदल न करें;ऐसा करना किसी भाषा के व्याकरण
के साथ छेड़ख़ानी करना ही माना जाएगा.अब बताइये तो संतोष को हिन्दी में कोई
संतोस लिखे तो कितना ग़लत होगा....और सरस्वती को शरश्वती लिखे तो ?
तो समझ-बूझ के साथ ही दूसरी भाषा के साथ खेलिये ..बाक़ायदा होमवर्क कीजिये
इसके लिये.चलते चलते बता दें कि क ख ग ज और फ़ ऐसे पाँच शब्द हैं जिनके
नीचे उर्दू ज़ुबान में नुक़्ते इस्तेमाल किये जाते है और वह भी बड़ी सतर्कता से.
यदि इसका उपयोग बिना जानकारी के किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है.
देखिये ये उदाहरण:
जीना : ज़िन्दगी जीना या जीवन जीना
ज़ीना : चढ़ाव ...
खुदाई : यानी मिट्टी की खुदाई
ख़ुदाई : ख़ुदा की ख़ुदाई (भगवान की कृपा)
अब कोशिश होगी कि यदि कहीं ब्लॉग्स पर ग़लत लिखा दिखा तो ख़बरदार कर दिया जाएगा। उम्मीद है ज़ुबान की सफ़ाई के इस नेक इरादे का आप बुरा नहीं मानेंगे।एक और मशवरा; जिन्हें उर्दू से वाक़ई मुहब्बत है और वे इसे विस्तार देना चाहते हैं तो उत्तर प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित उर्दू-हिन्दी
शब्द कोश अवश्य ख़रीदें।मात्र सौ रूपये क़ीमत का ये शब्दकोश उर्दू को बोलने,लिखने और समझने के लिये अलादीन का चिराग़ है.
कई ब्लॉगर भाई/बहन अपनी डायरियों में लिखे गए विभिन्न शायरों
की शायरी ब्लॉग पर जारी करते हैं ।अच्छा है , शायरी संक्रामक हो रही है.
गुज़ारिश इतनी भर है कि किसी शायर के एक से अधिक शे’र हों तो
उसे अशआर कहते है यानी शे’र का बहुवचन. कुछ लोग अशआर को
एकवचन समझते हैं तो अधिक शे’र देख कर अशआरों भी लिख देते हैं.
भगवान के लिये ऐसा मत कीजिये ..किसी ज़ुबान से मुहब्बत कीजिये
तो , पूरी वरना किसने कहा है ऐसा करने को. यदि किसी ने लिख दिया है
कि उनके शेरों से आनंद आ गया तो यहाँ वही शेर होंगे जो गिर या
कान्हा किसली के जंगल में पाए जाते हैं ...यानी सिंह.
उर्दू ऐसी एकमात्र समृध्द भाषा है जिसके पास बहुवचन के लिये
जुदा शब्द हैं.जैसे एक आसमान की बात हो तो हिन्दी में आसमान
और ज़्यादा तो आसमानों कर देने से काम चल जाएगा लेकिन उर्दू में
एक आसमान यानी फ़लक़ और सातों आसमान कहना हो तब सातों अफ़लाक़.
तो अब जब भी एक से अधिक शे’र जारी करें या लिखें तो
अशआर लिखें ...शेरों न लिखें.
उर्दू एक बड़ी संजीदा ज़ुबान है और इसकी पूरी ख़ूबसूरती
उच्चारणों पर आधारित है. उर्दू लिपि जानने वाले तो
इस बात का पूरा एहतियात रखते हैं कि वह शुध्द लिखी जाए
लेकिन देवनागिरी में आते ही मामला गड़बड़ हो जाता है.बिला शक
उर्दू में ऐसा आकर्षण है वह हर आम-औ-ख़ास को अपने क़रीब लाती है.
लेकिन ये ज़रूरी है कि हिंदी में लिखते / बोलते वक़्त हम ज़ुबान (उच्चारण)
की सफ़ाई का ख़ास ख़याल रखें.हिन्दी का मज़ा ये है कि वह जैसे लिखी जाती
है वैसे ही बोली जाती है.जहाँ ज बोलना या लिखना है वहाँ ज ही बोलिये;
जहाँ ज़ है (यानी ज के नीचे बिंदु लगी है जिसे नुक़्ता कहते है) वहाँ ज़ ही रखिये.
अपनी ओर से इसमें कुछ भी रद्दोबदल न करें;ऐसा करना किसी भाषा के व्याकरण
के साथ छेड़ख़ानी करना ही माना जाएगा.अब बताइये तो संतोष को हिन्दी में कोई
संतोस लिखे तो कितना ग़लत होगा....और सरस्वती को शरश्वती लिखे तो ?
तो समझ-बूझ के साथ ही दूसरी भाषा के साथ खेलिये ..बाक़ायदा होमवर्क कीजिये
इसके लिये.चलते चलते बता दें कि क ख ग ज और फ़ ऐसे पाँच शब्द हैं जिनके
नीचे उर्दू ज़ुबान में नुक़्ते इस्तेमाल किये जाते है और वह भी बड़ी सतर्कता से.
यदि इसका उपयोग बिना जानकारी के किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है.
देखिये ये उदाहरण:
जीना : ज़िन्दगी जीना या जीवन जीना
ज़ीना : चढ़ाव ...
खुदाई : यानी मिट्टी की खुदाई
ख़ुदाई : ख़ुदा की ख़ुदाई (भगवान की कृपा)
अब कोशिश होगी कि यदि कहीं ब्लॉग्स पर ग़लत लिखा दिखा तो ख़बरदार कर दिया जाएगा। उम्मीद है ज़ुबान की सफ़ाई के इस नेक इरादे का आप बुरा नहीं मानेंगे।एक और मशवरा; जिन्हें उर्दू से वाक़ई मुहब्बत है और वे इसे विस्तार देना चाहते हैं तो उत्तर प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित उर्दू-हिन्दी
शब्द कोश अवश्य ख़रीदें।मात्र सौ रूपये क़ीमत का ये शब्दकोश उर्दू को बोलने,लिखने और समझने के लिये अलादीन का चिराग़ है.
Wednesday, April 30, 2008
मज़ा तो तब है जब नेताजी के मित्र-मंडल की आय भी नेताजी की मानी जाए
ख़बर तो दमदार है कि मतदाता अब राजनेताओं से उनका आयकर रिटर्न
मांग सकेगा. प्रश्न इतना भर है कि क्या आयकर रिटर्न में
जताई गई और बताई गई आय पारदर्शी और सही होगी ?
हम सब नहीं जानते की इन नेताओं की आय का लेखा
जोखा इस तरह से रखा जाता है कि जिससे नेताजी मामूली समाजसेवी
नज़र आएँ. जबकि सारा ज़माना जानता है राजनेता महंगे मोबाइल हैण्डसैट,विदेशी
कारों,भव्य बंगलों,परिजनों द्वारा ख़र्चीली शॉपिंग्स ,एकड़ों में फ़ैले फ़ॉर्म हाउसेज़,विदेश
यात्राओं,बच्चों की महंगे कालेजों में पढ़ाई,और सबसे महत्वपूर्ण अपने चुनाव अभियानों
या अपने नेताओं के स्वागत में जारी इश्तेहारों के करोंड़ों के बजट से सीधे संलग्न होते
हैं लेकिन ये सब किसी एजस्टमेंट के तहत नेताजी के स्वयं की आय से ख़र्च ही नहीं
होते.....तो आख़िर ये सब होता कैसे है ?
उत्तर आसान है कि कुछ आय स्रोत अपने नाम पर,कुछ ख़ानदान यानी परिवार के नाम पर कुछ कृषि आय से,कुछ पत्नी के नाम से,कुछ बेटे के नाम से और कुछ आय स्वयं की
सेवा के लिये खड़े किये गए स्वयं-सेवी संगठनों मे समायोजित की जाती है . अब आपको
नेताजी निरीह,ग़रीब और समाज-सेवी नज़र नहीं आएंगे तो क्या.
ऊपर जो इश्तेहारों के ख़र्च की चर्चा है उसमें मज़ा ये है कि नेताजी तो
इश्तेहार देते ही नहीं.....सारा ख़र्च ...फ़लाने नेताजी मित्र मंडल के नाम से होता है जिसमें
जुड़े होते हज़ारों ज़मीनी कार्यकर्ता...सबके नाम से चंदे की रसीद कट जाती है और बस
अख़बारों और होर्डिंग बनाने वाली एजेंसियों को भुगतान हो जाते हैं.
मज़ा तब है जब आयकर विभाग इस बात पर नज़र रखे कि
मित्र मंडल भी बाक़ायदा पैन नम्बर धारक हों यानी उनका पंजीयन भी बाक़ायदा विभागीय स्तर पर हो . इसके बाद भी यदि ये मित्र मंडल नौटंकी जारी रहती है तो इन इश्तेहारों के बारे में संबधित नेताजी को नोटिस जारी किये जाएँ कि आपने इस इश्तेहार का भुगतान कहाँ से और कैसे किया है.
किसको पड़ी है कि नेताजी रिटर्न की कॉपी मांगने जाएगा....
ख़ुद के काम तो निपटते नहीं और ज़िन्दगी फ़ुरसत देती नहीं कि इस तरह के काम करे.और शर्तिया ये बात भी कही जा सकती है कि यदि सूचना आयोग ने ये ख़बर जारी की हो नेताजी तो आज से ही सतर्क होकर इस साल का रिटर्न साफ़-सुथरा भरने वाले हैं......इन चोचलों से वाक़ई कुछ नहीं होने वाला
देश को चाहिये कुछ समझदार नागरिक और बहुत से टी.एन.शेषन.
मांग सकेगा. प्रश्न इतना भर है कि क्या आयकर रिटर्न में
जताई गई और बताई गई आय पारदर्शी और सही होगी ?
हम सब नहीं जानते की इन नेताओं की आय का लेखा
जोखा इस तरह से रखा जाता है कि जिससे नेताजी मामूली समाजसेवी
नज़र आएँ. जबकि सारा ज़माना जानता है राजनेता महंगे मोबाइल हैण्डसैट,विदेशी
कारों,भव्य बंगलों,परिजनों द्वारा ख़र्चीली शॉपिंग्स ,एकड़ों में फ़ैले फ़ॉर्म हाउसेज़,विदेश
यात्राओं,बच्चों की महंगे कालेजों में पढ़ाई,और सबसे महत्वपूर्ण अपने चुनाव अभियानों
या अपने नेताओं के स्वागत में जारी इश्तेहारों के करोंड़ों के बजट से सीधे संलग्न होते
हैं लेकिन ये सब किसी एजस्टमेंट के तहत नेताजी के स्वयं की आय से ख़र्च ही नहीं
होते.....तो आख़िर ये सब होता कैसे है ?
उत्तर आसान है कि कुछ आय स्रोत अपने नाम पर,कुछ ख़ानदान यानी परिवार के नाम पर कुछ कृषि आय से,कुछ पत्नी के नाम से,कुछ बेटे के नाम से और कुछ आय स्वयं की
सेवा के लिये खड़े किये गए स्वयं-सेवी संगठनों मे समायोजित की जाती है . अब आपको
नेताजी निरीह,ग़रीब और समाज-सेवी नज़र नहीं आएंगे तो क्या.
ऊपर जो इश्तेहारों के ख़र्च की चर्चा है उसमें मज़ा ये है कि नेताजी तो
इश्तेहार देते ही नहीं.....सारा ख़र्च ...फ़लाने नेताजी मित्र मंडल के नाम से होता है जिसमें
जुड़े होते हज़ारों ज़मीनी कार्यकर्ता...सबके नाम से चंदे की रसीद कट जाती है और बस
अख़बारों और होर्डिंग बनाने वाली एजेंसियों को भुगतान हो जाते हैं.
मज़ा तब है जब आयकर विभाग इस बात पर नज़र रखे कि
मित्र मंडल भी बाक़ायदा पैन नम्बर धारक हों यानी उनका पंजीयन भी बाक़ायदा विभागीय स्तर पर हो . इसके बाद भी यदि ये मित्र मंडल नौटंकी जारी रहती है तो इन इश्तेहारों के बारे में संबधित नेताजी को नोटिस जारी किये जाएँ कि आपने इस इश्तेहार का भुगतान कहाँ से और कैसे किया है.
किसको पड़ी है कि नेताजी रिटर्न की कॉपी मांगने जाएगा....
ख़ुद के काम तो निपटते नहीं और ज़िन्दगी फ़ुरसत देती नहीं कि इस तरह के काम करे.और शर्तिया ये बात भी कही जा सकती है कि यदि सूचना आयोग ने ये ख़बर जारी की हो नेताजी तो आज से ही सतर्क होकर इस साल का रिटर्न साफ़-सुथरा भरने वाले हैं......इन चोचलों से वाक़ई कुछ नहीं होने वाला
देश को चाहिये कुछ समझदार नागरिक और बहुत से टी.एन.शेषन.
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