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Wednesday, August 22, 2007

अब तो ये आलम है कि ख़ुद से ही मुलाक़ात नहीं होती !

पूछो न मन से ऐसा क्यों हो रहा है
मिल रहे हैं सब से
न जाने कब से
लोकाचार है
संसार है
व्यवहार है
त्योहार है
कहीं ये अत्याचार तो नहीं मन पर
कितना बोझ बढ़ा दिया है मन पर
छटाक भर का ह्र्दय कोमल सा
उस छोटे से मन पर मन भर का बोझ बढ़ाते हो तुम
थक नहीं जाते हो तुम ?

मैने तो सुना था दूसरे सताते हैं तुम्हें ?
तुम तो खु़द के सताए लगते हो !

क्यों भाग रहे हो इतना
गुणा-भाग ही करते रहोगे
या ये भी जानोगे कि जोड़ने में घट गए कितना

मिलो यारब...ख़ुद से मिलो
चलो आज से ही शुरू करो

सत्य है तुममें
सत्व है तुममें
जब जागो तब सुबह है
अंर्त-आत्मा को जानो
निज को पहचानो

पढ़ने पढ़ाने में
सुनने सुनाने में
खु़द को नहीं पढ़ पाए मियाँ

ऐसी भी क्या व्यस्तता
सब से मिलते हो
अब तो ये आलम है कि खु़द से ही मुलाक़ात नहीं होती
क्या ये सच बर्दाश्ते क़ाबिल है
चिंतन के आईसीयू में मन को ले जाओ
चिता जले उसके पहले ख़ुद चेत जाओ

1 comment:

Manish Kumar said...

विचार अच्छे हैं..