Subscribe

RSS Feed (xml)



Powered By

Skin Design:
Free Blogger Skins

Powered by Blogger

Wednesday, August 15, 2007

सब मुसाफ़िर हैं यहाँ कोई नहीं रह जाएगा

ज़िन्दगी की सचाइयाँ बयाँ करते चंद अशाअर


अज़हर हाशमी ’इनायती’:

रास्तो क्या हुए वह लोग जो आते जाते
मेरे आदाब पे कहते थे के जीते रहिये.

मुनव्वर राना:

बिछड़ेंगे तो मर जाएंगे हम दोनो हम दोनो बिछड़कर
इक डोर में हमको यही डर बांधे हुए है.

ठंडे मौसम में भी सड़ जाता है बासी खाना
बच गया है तो ग़रीबों के हवाले कर दे.

कोई दु:ख तो कभी कहना नहीं पड़ता उससे
वह ज़रूरत को तलबगार से पहचानता है

अहमद फ़राज़:

बदन चुरा के न चल ऐ क़यामते - ग़ज़दाँ
किसी किसी को तो हम आँख उठा के देखते हैं.

’मस्त’कलकत्तवी:

वह फूल सर चढ़ा जो चमन से निकल गया
इज़्ज़्त उसे मिली जो वतन से निकल गया


वाली आसी:

लोग प्यास अपनी बुझाते हैं चले जाते हैं
और दरिया है कि चुपचाप रवाँ रहता है

देर तक रहे रहे दाता तेरी ऊँची सराय
सब मुसाफ़िर हैं यहाँ कोई नहीं रह जाएगा.

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी:

अब कह दिया तो साथ निभाएंगे उम्र भर
हालाँकि दोस्ती का ज़माना तो है नहीं

वसीम बरेलवी:

लगा के देख ले जो भी हिसाब आता हो
मुझे घटा के तू गिनती में रह नहीं सकता

नामालूम:

अपनी फ़ज़ा से अपने ज़मानों से कट गया
पत्थर खु़दा हुआ तो चट्टानो से कट गया

बशीर बद्र:

चमक रही है परों में उड़ान की खु़शबू
बुला रही है हमें आसमान की खुशबू

राहत इन्दौरी:

अब ग़म आएं,खु़शियाँ आएं,मौत आए या तू आए
मैने तो बस आहट पाई और दरवाज़ा खोल दिया

मशहूर शायर मुनव्वर राना की किताब
सफ़ैद जंगली कबूतर से साभार.

2 comments:

Udan Tashtari said...

सभी एक से बढ़ एक शेर लाये हैं, बहुत आभार. कुछ और भी सुनायें सफेद जंगली कबूतर से, अगर उचित समझें.

Unknown said...


एक शेर आपकी मुहब्बतों के हवाले

श्याह् रातों के साथ चलता हूँ
जुगनुओं रौशनी तो आने दो


विजय शान