ब्लाँग लिखने के बाद पहली चिंता...ब्लाँगवाणी / चिट्ठाजगत / नारद देखो...कितनी बार पढ़ा गया मैं ?
कितनी छटपटाहट है दिख जाने की...इसे बिक जाने की कहें तो कैसा रहे.
अरे अपने ब्लाँगर भाई/बहनों की टिप्पणियों के हाथों प्यार से बिक जाने की बात कर रहा हूँ.
इतनी जल्दी बुरा क्यों मान जाते हो यार. अच्छा ये सच तो बता दो कि टिप्पणी के लिये बेताब रहते हो या नहीं ? ब्लाँग तो मन से मुहब्बत है भाई ( बहन भी) टिप्पणीकारों से नहीं.
Thursday, August 9, 2007
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2 comments:
मन की मुहब्बतवाली बात ठीक होने के बाद भी कुछ लोग हैं जो टिप्पणी करते ही रहते हैं. हमारी तरह.
इस सत्य का कोई नाम-पता है?
फ़िर भी आलोचना या प्रशंशा का तो महत्वा है ही
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