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Thursday, October 4, 2007

जब तक मेरा प्रेम पहचानोगे ...बहुत देर हो जाएगी

सच कह रहा हूँ मैं
अभी भी जान लो
अपने दोस्त की सात्विकता और सत्य को पहचान लो
मैं गुज़रा वक़्त हूँ जो कभी लौट कर नहीं आता

मैं मुँह का ज़ायका बदलने वाला ज़ाफ़रान नहीं
मैं महफ़िल को लुभा लेने वाला लटका-झटका भी नहीं
मैं नहीं वह झूठ जो रिश्तों को बाज़ारू बनाते सिलसिलों में पोशीदा है
मैं रैम्प का वह मॉडल नहीं जो दिखा रहा है अपनी बॉडी-बिल्डिंग
मैं वह काफ़ूर हो जाने वाला परफ़्यूम भी नहीं
मैं वह आश्वासन नहीं जो अंतत: पूरा नहीं होता
मैं नेता का वह वादा नहीं जो पूरा न करने के लिये दिया जाता है
मैं वह झूठ नहीं जो आपको बहला कर खु़श कर दे
मैं व्यापारी का वह ज़ुल्म नहीं जो कहर ढा देता है


मैं हूँ सूरज और चाँद सा सच
पानी सा खरा
पहचानो तो ज़रा
कौन हूँ मैं
मैं हूँ वह दोस्त जो खरी खरी सुनाता है
चोट करता है हर उस छदम व्यवहार पर
जिसमें स्वार्थ और कुटिलता का अभिनय है
मैं हूँ जिस्म का वह पसीना जो मित्रता के लिये मशक्कत करता है
ख़ुशबू बन कर हमेशा महकता है मेरे आचरण में

मैं हूँ वह सखा जो कुछ नहीं चाहता अपने लिये
चाहता है कि मैं करूँ कुछ अपनों के लिये
याद में बसा रहूँ कुछ ऐसे कि याद ही न करना पड़े मुझे
सदभावना की पाती कुछ इस तरह रचना चाहता हूँ तुम्हारे जन्म दिन पर
पढ़ो .....और कुछ गुनो मेरे प्रिय....

मै आया हूँ जन्म दिवस पर
मरण दिवस पर तुम आ जाना
मैं शब्दों में प्रीत लगाता
तुम शब्दों की प्रीत निभाना.

इतना सब लिखने के बाद भी जानता हूँ
कि जब तक मेरा प्रेम पहचानोगे....
बहुत देर हो जाएगी तब तक.

5 comments:

Udan Tashtari said...

इतना सब लिखने के बाद भी जानता हूँ
कि जब तक मेरा प्रेम पहचानोगे....
बहुत देर हो जाएगी तब तक.


---बहुत गहरी बात कही है.

अनिल रघुराज said...

आपकी कविता ने कभी किसी की सुनी हुई लाइनें याद आ गईं कि...
अबकी बिछुड़ा तो खो जाऊंगा कहीं
अरी पागल, मेरा रास्ता तो रोक ले।

शिवानी said...

jitni tareef karien utni kam hai .....
mai aaya hu janm divas per
maran divas per tum aana
mai shabdon ki preet lagata
tum shabdon ki preet nibhana ....

bahut khoob ..saral shabdon ka sahi prayog kiya hai ...lagta hai aapka profile dekhne ki zaroorat nahi hai ....congrats ....
thanx for the wonderful comments for my guzarish (my gazal )...

एक पंक्ति said...

शुक्रिया !
समीर भाई,अनिल भाई और शिवानीजी.
हर इंसान की ज़िन्दगी में दोस्त एक अहम ज़रूरत है.जब वह दोस्ती का मान नही रखता (सनद रहे वह मेरा दोस्त
है..मेरी दोस्त नहीं)या जान नहीं पाता दोस्ती का मोल तो भावनाओं का झरना फ़ूट पड़ता है.

शिवानीजी हम सब ने अपने प्रोफ़ाइल छाप छाप कर अपना अहंकार ही जताते हैं...मैं उस रास्ते से बचना चाहता हूँ ..अहंकार कम करना ही होगा क्योंकि जगत मेरे बिना भी चलेगा ; इसका भान है मुझे.

रोहित अग्रवाल said...

कि जब तक मेरा प्रेम पहचानोगे....
बहुत देर हो जाएगी तब तक.
मायने नही रखता....


वह हमेशा खुश रहे..... क्या ज़रूरी है की किसी की ग़लती के लिए उसे अहसास दिलाया ही जाए... और फिर उसे हमारे बारे मे सोचकर दुखी होने का मौका दिया जाए.... नही ना... तो फिर एक कविता और लिखिए...

की...

तुझे याद करके जी लूँगा...
तुझे खुश देखकर खुश रह लूँगा...
पर यदि तू दुखी हुई तो.... तो... ???