लक्ष्य पर दृष्टि डालकर चलिये
शक को मन से निकालकर चलिये
तन है संदूक, साँसें सिक्के हैं
शुभ-अशुभ देखभाल कर चलिये
भूख और आंसुओं की बस्ती में
वक़्त थोड़ा निकालकर चलिये
धन सहित पद-प्रतिष्ठा भी हो जब
अपना आपा संभालकर चलिये
सत्य के जल में अपने जीवन को
है ज़रूरी खंगालकर चलिये
इसमें जोखिम तो है मगर युग को
अपने साँचे में ढालकर चलिये
रचयिता:प्रो.अज़हर हाशमी,रतलाम.
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1 comment:
धन सहित पद-प्रतिष्ठा भी हो जब
अपना आपा संभालकर चलिये
waah.....bahut khuub
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