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Thursday, March 6, 2008

पूरा नॉवेल जो न कह पाए ...एक शे'र कह जाए !

यक़ीनन मशहूर शायर डॉ.बशीर बद्र साहब ठीक फ़रमाते हैं।ऊपर लिखी इबारत उन्हीं का वक्तव्य है.अभी कुछ दिन पहले शायरी से बेइंतहा मुहब्बत करने वाले एक दोस्त ने ये तीन शे'र सुनाएऔर फ़िर याद आ गए...डॉ.बद्र और उनकी बात..........

दोस्त को पहले शे'र के शायर का नाम मालूम था ...बाक़ी दो का नहीं....कितने मुख़्तसर में बात को कहा है और मानी कितने गहरे हैं.......

बेच डाला कल हमने अपना ज़मीर
ज़िन्दगी का आख़िरी ज़ेवर भी गया

(राजेश रेड्डी)

आदतन तुमने कर दिये वादे
आदतन हमने एतबार किया

(नामालूम)

तलवे ज़ख़्मी होने दे
फूलों मत पाँव रख

(नामालूम)

2 comments:

Udan Tashtari said...

तीनों ही शेर एक से बढ़ कर एक...शाईर तो हमें भी नहीं मालूम.

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया ।
घुघूती बासूती