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Friday, October 19, 2007

हम नहीं लिखेंगे ...टिप्पणी.

क्योंकि....

हमेशा सच नहीं लिख सकते

लिखने का मतलब ...हमने लिखी ... आप भी लिखो

सामने वाले की तारीफ़ करने में तकलीफ़ होती है


लिख देने के बाद भी हमारे लिये तो कोई कुछ लिखता ही नहीं

लिखने के लिये पूरा का पूरा पढना पडता है

लिखने की कोई ज़ोर ज़बरदस्ती है क्या साहब

हमने लिख दी और किसी ने फ़िर हमारे लिखे पर नहीं लिखी तो

कौनू फ़रक परत है साहेब

नाही लिखबै...तो क्या आप नाही लिखा करी

6 comments:

Udan Tashtari said...

नाही लिखबै...तो क्या आप नाही लिखा करी


--काहे भईया, का भईल?? काहे रुसे से हो?

Atul Chauhan said...

सही कहा है,लोगों को वाकई तक्लीफ होती है। ब्लोत पढ्ते तो है। मगर टिप्पणी नहीं करते।

एक पंक्ति said...

समीरभाई;
माफ़ करिबै.
तोहार नाम एक्सेप्सन मा लिखना चाही रहे थे,
मुआ हमार मोबाइलवा बज गवा और हम भूलि गए.
आप से रूसबे ? इम्पासिबल.

राकेश खंडेलवाल said...

लिखने की कोई ज़ोर ज़बरदस्ती है क्या साहब

काहे साहब आपही उत्तर दे दिये हो

Anita kumar said...

अजी आप नाराज क्युं हो रहे हैं , हम लिखेंगे न चाहे आप लिखे या न लिखे।

उन्मुक्त said...

लीजिये टिप्पणी नहीं करते।