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Tuesday, April 29, 2008

मेरी ज़िन्दगी इस तरह सब की हो गई !

कभी कभी यूं होता है कि कविता ख़ुद आपके पास
चलकर आती है। ये नहीं बताती कि किसने उसे लिखा
है; बस कुछ यूं ही ये कविता भी मुझ तक चली आई
है। मित्र ने बताया कि किन्हीं मुनि महाराज की है।
आपसे बांटते हुए झिझक इसलिये नहीं
इसका यश उन्हीं मुनि के खाते में जमा होना
तय रहा।


एक उड़ते
पखेरू ने
मुझसे निरंतर उड़ते रहने को कहा।
एक पेड़ ने तूफ़ानों के बीच
अडिग खड़े रहने को कहा।
और एक नदी मुझसे निरंतर
बहते रहने को कह गयी।
सूरज ने सुबह आ कर
मुझसे दिनभर
रोशनी देते रहने को कहा।
चांद सितारों ने
रातभर अंधेरों से
जूझने को कहा।
और एक नीली झील
मुझे बाहर-भीतर
एक सार
निर्मल होने को कह गयी
सागर ने
धीरे से
लहरा कर कहा-
सीमाओं में रहो।
आकाश ने अपने में
सबको समा कर कहा-
असीम होओ।
और एक नन्हीं बदली
प्रेम से भर कर
मुझसे निरंतर बरसने को कह गयी,
मेरी ज़िंदगी
इस तरह
सबकी हो गयी।

3 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

गहरा दर्शन, प्रभावी रचना।

***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com

अमिताभ मीत said...

अच्छा है.

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.