ब्लॉग्स पर शेर’ ओ’शायरी हमेशा शबाब पर रहती है.सदाबहार आयटम.
कई ब्लॉगर भाई/बहन अपनी डायरियों में लिखे गए विभिन्न शायरों
की शायरी ब्लॉग पर जारी करते हैं ।अच्छा है , शायरी संक्रामक हो रही है.
गुज़ारिश इतनी भर है कि किसी शायर के एक से अधिक शे’र हों तो
उसे अशआर कहते है यानी शे’र का बहुवचन. कुछ लोग अशआर को
एकवचन समझते हैं तो अधिक शे’र देख कर अशआरों भी लिख देते हैं.
भगवान के लिये ऐसा मत कीजिये ..किसी ज़ुबान से मुहब्बत कीजिये
तो , पूरी वरना किसने कहा है ऐसा करने को. यदि किसी ने लिख दिया है
कि उनके शेरों से आनंद आ गया तो यहाँ वही शेर होंगे जो गिर या
कान्हा किसली के जंगल में पाए जाते हैं ...यानी सिंह.
उर्दू ऐसी एकमात्र समृध्द भाषा है जिसके पास बहुवचन के लिये
जुदा शब्द हैं.जैसे एक आसमान की बात हो तो हिन्दी में आसमान
और ज़्यादा तो आसमानों कर देने से काम चल जाएगा लेकिन उर्दू में
एक आसमान यानी फ़लक़ और सातों आसमान कहना हो तब सातों अफ़लाक़.
तो अब जब भी एक से अधिक शे’र जारी करें या लिखें तो
अशआर लिखें ...शेरों न लिखें.
उर्दू एक बड़ी संजीदा ज़ुबान है और इसकी पूरी ख़ूबसूरती
उच्चारणों पर आधारित है. उर्दू लिपि जानने वाले तो
इस बात का पूरा एहतियात रखते हैं कि वह शुध्द लिखी जाए
लेकिन देवनागिरी में आते ही मामला गड़बड़ हो जाता है.बिला शक
उर्दू में ऐसा आकर्षण है वह हर आम-औ-ख़ास को अपने क़रीब लाती है.
लेकिन ये ज़रूरी है कि हिंदी में लिखते / बोलते वक़्त हम ज़ुबान (उच्चारण)
की सफ़ाई का ख़ास ख़याल रखें.हिन्दी का मज़ा ये है कि वह जैसे लिखी जाती
है वैसे ही बोली जाती है.जहाँ ज बोलना या लिखना है वहाँ ज ही बोलिये;
जहाँ ज़ है (यानी ज के नीचे बिंदु लगी है जिसे नुक़्ता कहते है) वहाँ ज़ ही रखिये.
अपनी ओर से इसमें कुछ भी रद्दोबदल न करें;ऐसा करना किसी भाषा के व्याकरण
के साथ छेड़ख़ानी करना ही माना जाएगा.अब बताइये तो संतोष को हिन्दी में कोई
संतोस लिखे तो कितना ग़लत होगा....और सरस्वती को शरश्वती लिखे तो ?
तो समझ-बूझ के साथ ही दूसरी भाषा के साथ खेलिये ..बाक़ायदा होमवर्क कीजिये
इसके लिये.चलते चलते बता दें कि क ख ग ज और फ़ ऐसे पाँच शब्द हैं जिनके
नीचे उर्दू ज़ुबान में नुक़्ते इस्तेमाल किये जाते है और वह भी बड़ी सतर्कता से.
यदि इसका उपयोग बिना जानकारी के किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है.
देखिये ये उदाहरण:
जीना : ज़िन्दगी जीना या जीवन जीना
ज़ीना : चढ़ाव ...
खुदाई : यानी मिट्टी की खुदाई
ख़ुदाई : ख़ुदा की ख़ुदाई (भगवान की कृपा)
अब कोशिश होगी कि यदि कहीं ब्लॉग्स पर ग़लत लिखा दिखा तो ख़बरदार कर दिया जाएगा। उम्मीद है ज़ुबान की सफ़ाई के इस नेक इरादे का आप बुरा नहीं मानेंगे।एक और मशवरा; जिन्हें उर्दू से वाक़ई मुहब्बत है और वे इसे विस्तार देना चाहते हैं तो उत्तर प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित उर्दू-हिन्दी
शब्द कोश अवश्य ख़रीदें।मात्र सौ रूपये क़ीमत का ये शब्दकोश उर्दू को बोलने,लिखने और समझने के लिये अलादीन का चिराग़ है.
Tuesday, June 10, 2008
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14 comments:
सही है । आप शायद मद्दाह शब्दकोश की बात कर रहे हैं ।
मुद्दा सही है । ये सामान्य त्रुटियां हैं जो अकसर हो जाया करती हैं ।
बहुत अच्छी बातें सामने रखीं आपने। क्या ऐसा हो सकता है कि आप इसी तरह हर दिन या जब भी मुमकिन हो कुछ शब्दों के अर्थ और उनका उच्चारण रीडर्स के सामने रख दें। बहुतों का भला होगा।
बहुत सार्थक पहल है. जारी रखिये.
bahut hi patte ki baat kahi hai aapne yaha,itni khubsurat bhasha ko ussi ki khubsurati ke saath likhna chahiye,hum to abhi sikh rahe hai,koi galati nazar aaye kabhi,bejhijak durust karwa digiyega.
आप ने बहुत ही अच्छा मज़मून लिखा है. जीना - ज़ीना और खुदाई - ख़ुदाई की अच्छी मिसालें भी दी हैं लेकिन मेरी मानें तो हुज़ूर अश'आर की जगह शेर या शेरों भी कह दिया जाये तो कुछ ग़लत नहीं. मीर तक़ी मीर ने आख़िर कहा ही था - हैं शेर सब मेरे ख़वास पसंद, पर गुफ़्तगू मेरी अवाम से है-
मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी जो कहा उसे सुनते चलिए -खुलता किसी पे क्यूं मेरे दिल का मुआमला, शेरों के इंतख़ाब ने रुस्वा किया मुझे.
और साहिर लुधियानवी के "रंग और नूर की बारात किसे पेश करूं" वाले गाने का वो शेर भी याद होगा - ये मेरे शेर मेरे आख़िरी नज़राने हैं, मैं उन अपनों में हूं जो आज से बेगाने हैं -
उर्दू में इतना लचीलापन है कि अश'आर को शेरों कहें तो ग़लत नहीं माना जाएगा. हां अगर लब-ओ-लहजा सुधार लिया जाए तो ज़ुबान की ख़ुबसूरती और निखर आएगी
सभी का शुक्रिया.असद भाई की बात से इत्तेफ़ाक़ किया जा सकता है क्योंकि ज़ुबान और शायरी के जिन उस्तादों के नाम उन्होंने दिये उनके काम पर मुँहज़ोरी करने की औक़ात नहीं हमारी.ना ही किसी को बेइज़्ज़्त करने का इरादा.बस एक नेकनियती से अपनी बात कही है कि जब अपनी मादरी-ज़ुबान (मातृभाषा)से बाहर जाकर काम करें तो सतर्कता ज़रूरी है.शायरी में मीटर(रदीफ़/क़ाफ़िया)में हमेशा से लिबर्टी ली जाती रही है (हिन्दी/उर्दू दोनों में)तो वहाँ क्या होता आया है इसे छोड़ें.इरादा आप-सब के साथ मिलजुल कर भाषा को ठीक करना है...एक जुर्रत हमने की है...आप भी करें ...हमें भी बताएँ...इन्हीं नेक कोशिशों से तो सुधरेगी भाषा..अब ब्लॉग की दुनिया ऐसे एडीटर साहब कौन लाए जो हम सबको मॉनीटर करे...तो आइये..हाथ बढ़ाएँ हम भी.
(छपते छपत:असद भाई आपके ब्लॉग की सैर की बहुत उम्दा काम है आपका..अब तो हिन्दी में लिखने के कई औज़ार आसानी से उपलब्ध हैं...देवनागिरी में ज़रूरत है ऐसी जानकारियों की जो आप दे रहे हैं)
आप सभी तक language के इस छोटे से हरक़ारे का सलाम पहुँचे)
आमतौर पर की जाने वाली इन आम ग़लतियों की ओर यदि इसी तरह बातें की जाती रहेगीं, तो निश्चित तौर पर प्रयोग में सुधार होगा. यह सिलसिला जारी रहे.
हुज़ूर शुक्रिया आप का कि आप को हमारा ब्लॉग (http://hamkalaam.blogspot.com) पसंद आया. रोमन में लिख्ने की सिर्फ़ एक वजह है...कि उसे पढ़ने वाले बहुत से ऐसे लोग हैं जो देवनागरी से वाक़िफ़ नहीं बल्कि उन्हें या तो अंग्रेज़ी आती है या फिर उर्दू. इसलिये बीच के रास्ते के तौर पर ये मुनासिब समझा कि रोमन में ही ये ब्लॉग रखा जाये.
अभी मैंने आपकी टिप्पणी के बाद मैंने आपका यह लेख पढ़ा और मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि आपने मेरे मन पसंद विषय पर लिखा है। एक बात जो आपको मैं कहना चाहता हूं कि हम कृतिदेव में टाइप कर उसे यूनिकोड परिवर्तित टूल में ले जाते हैं तब वह नुक्ता स्वीकार नहीं करता। इसलिये नुक्ता न आने की समस्या है। ज और ग तथा अन्य शब्द में नुक्ता लगने से उसका स्वर ही बदल जाता है पर लिखना मुश्किल हो रहा है। रोमन लिपि में तो जेड से अपने अपने आप आ जाता है पर कृतिदेव से यूनिकोड में परिवर्तित टूल में नहीं आता। इसका कोई उपाय हो तो बतायें। साथ ही उर्दू के नाम अपनी कविताओं का स्वरूप बिगाड़ने वालों को प्रेम से समझाते रहें। आपकी टिप्पणी और आलेख दोनों से प्रभावित हुआ।
परहेज+ - यह ऐसा हो जाता है
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दीपक भारतदीप
उपयोगी लेखन क़ाबिले-तारीफ़
उपयोगी सलाह
आपने बिल्कुल सही बात कही है लेकिन लोग इसकी धज्जियाँ उड़ाते हैं और कुछ तो ऐसे हैं अशुद्ध वर्तनी में शायरी भी कर रहे हैं । बहुत अफ़सोस होता है यह सब देख कर !
दुरुस्त फ़रमाया।
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